Sunday, May 12, 2013

गलत सवाल



रेड लाइट एरिया की सड़क पर खड़े खड़े अपने पर कोफ्त हो रही थी। फोटो ग्राफर का इंतजार करते करते फोटोग्राफर पर भी गुस्सा आ रहा था जो समय न आने के लिए मशहूर हो चुका था। मेरे पास से एक रिक्शा गुजारा जिस पर तीन लड़के जा रहे थे। उम्र कोई दस से गयारह साल। नजरें जवान होने को मचल रही थीं।  तीनों की नजरें कोठों की खिडकियों से ग्राहकों को बुलाने वालियों पर लगी हुईं थी। रिक्शा जाम में रूका तो बीच वाले मोटे गालों वाले लड़का ने कहा, चलती क्या खंडाला। उसकी बात सुन कर खिड़की से झुक कर लगभग आधी लटकी सी नेपालन बोली, जा पहले मां का दूध पी कर आ। ऊपर आ जाऊं क्या ---- भूख लगी है--- तभी जाम खुला और वे तीनों लड़कों का रिक्शा भी आगे बढ़ गया लेकिन मैं गुस्से में वहीं खड़ी थी। तभी मेरा फोटोग्राफर भी मुझे दिख गया, शायद वो भी इसी जाम में फंसा हुआ था। वैसे भी इस सड़क में अकसर जाम लगता रहता है। 
कुछ तो ध्यान रखा करो, मैंने फोटोग्राफर से कहा।
देख रही हो मैडम, कितना जाम लगा हुआ है। तभी महिला संगठन की महिलाएं भी मुझे दिख गयी। उनमें से एक बोली, चलो आशा को कोठे पर चलते हैं। वहीं लड़कियां अन्ना की फोटो के सामने पूजा कर रही हैं। महिला संगठन की कार्यकर्ता फटाफट कोठे की सीड़िया चढ़ गई लेकिन मेरा फोटोग्राफर मेरे से पहले कोठे की सीड़िया चढ़ने का साहस नहीं कर पाया। 
उसकी कमजोर  हिम्मत देख कर मैंने की बेहद संकरी सीड़ियां चढ़ना शुरू किया। मेरा बैग बार बार सीड़ियों की दीवार से लड़ रहा था जैसे मेरा मन मुझ से लड़ था।
पीछे पीछे एक दो और भी फोटोग्राफर थे। एक रिपोर्ट भी था। इतनी भीड़ देख कर आशा बिदक गई। महिला संगठन वालियों से बोली, मैंने आपसे कहा था, आप केवल मैडम को ले कर आना। 
और मैडम पिछली बार आपने भी मेरे बेटी के बारे में लिख दिया था कि मेरी बच्ची देहरादून के वेल्हम स्कूल में पढ़ रही है। आपको पता है, उसके बाद मुझे उसे वहां से हटा कर चेन्नई भेजना पड़ा था। आपने खबर में कुछ दलालों के नाम खोल दिए थे, मुझे लगा कि वे मेरी बेटी तक न पहुंच जाएं। 
मैने पूछा, तेरे बेटे का एमबीए पूरा हो गया क्या ?
आशा मेरे कान में बोली, मेडम, उसकी बहुत अच्छी नौकरी लग चुकी है। मैंने कहा, तो फिर निकल जा इस दलदल से। 
मेरे बात का जवाब देने के बजाए आशा ने इशारा किया, मैडम लड़कियों ने अन्ना टोपी लगा ली है। वे अन्ना की फोटो के सामने पूजा शुरू कर चुकी हैं। 
कोठे के मुख्य कक्ष में बहुत सारे भगवान तस्वीरों में से देख रहे थे। एक ऊचे आले में दो पैरों का चित्र रखा हुआ था जिसके आगे चिराग जल रहा था। भगवान के चित्रों की बगल में  एक भरपूर जवान नतृकी का गोल्ड प्लेटेड चित्र भी दिखायी दिया जिसका सरका हुआ आंचल उसे और भी जिंदादिल बता रहा था।

आशा मेरे पास आ कर खड़ी हो गई ताकि मैं तवायफ के जीवन में ज्यादा न झांक सकूं। उन्होंने कपड़े तो पूरे पहना दिए हैं या वे अपनी छोटी छोटी टॉप और जींस में हैं। मैंने पूछा।
अरे नहीं, उन्होंने दुप्पटे में अपने को ढका हुआ है। 
फोटोग्राफर फटाफटा फोटो खीच रहे थे। 
मुझे उन्हें देखना अच्छा नहीं लगा रहा था। वे दस लड़कियां अन्ना की टोपियां पहन कर अन्ना की पूजा कर रही थी लेकिन वहीं दूसरी कोठरी में बक्सा अपने तीन दिन के बच्चे को गोद में ले कर बैठी थी। उसकी दूसरी सखियां नन्हे फरिश्ते को पाउडर लगा रही थीं । मेरा गोविंदा , मेरा कान्हा,  कह कह कर उसे पुचाकर रही थी। बक्सा ने बताया ये जन्माष्ठमी के दिन पैदा हुआ था, ठीक वैसे ही तेज बरसात और आधी रात में । यह कह कर मुश्किल से 14 -15 साल की बक्सा ने नन्हें गोविंद को सीने से लगा लिया। उसके पीले चेहरे पर ममता चमकने लगी। 
मैंने कोठे की मालकिन आशा से पूछा , गोविंद का पिता का मालूम है , कौन है। आशा बोली, यहां सब इसके पिता आते हैं। 
एक पल को लगा, मेरा सवाल ही गलत है।

Saturday, March 14, 2009

बीजी की कुछ यादें

आज दूध वाला जब नौ बजे तक न आया तो मुझे दूध के लिये चिंता हुई, आज होली के कारण बाजार भी बंद रहेंगे।
मुझे बीजी की याद आ गई। बीजी ,मेरी सासु जी, होती तो वह दूध पहले ही ले कर रख लेती थी। कह देती, कल को रंग में कहां दूध ले कर आ सकेगा, दूधवाला। उन्हें फिक्र रहता था, बच्चे आयेंगे तो कहीं दूध खत्म न हो जाएं। दो साल पहले की ही तो बात है, जब बीजी ने खाना पीना छोड़ दिया था, बच्चे होली पर घर आये हुए थे। सब ने बीजी को पूछा , बीजी क्या खाना है। बीजी मेरी तरफ देख कर बोली, बच्चों के लिये भठूरे छोले बना ले। भठूरों की तैयारी रात को ही कर के रख दी, छोले भी भिगो दिये। सुबह भठूरे छोले बनाये तो बड़ा बेटा बोला, बीजी आप भी थोड़ा सा ले लें। बीजी ने काफी कहने पर आधे से भी कम भठूरा खाया। उस होली पर सभी ने खूब मजा किया, बीजी भी बच्चों के बीच सुखद महसूस कर रही थी। बच्चे भी सारा समय उनके बेड पर ही बैठे रहे। बार बार एक ही बात कहती, तुम एंज्वाय करों, मैं ठीक हूं। जब दोनों बेटे घर आते, वे बहुत खुश होती। हर थोड़ी देर के बाद कहती, कुछ बना खिला दें इन्हें। मेेरे पति बीजी के अकेले ही बेटे थे,इस लिये बीजी अपने पोतों को कुछ ज्यादा ही प्यार करती थी। उस होली पर बीजी बहुत खुश थी। होली के दूसरे दिन बीजी से पूछा वे क्या खाएंगी, वे बोली , मैंने बहुत खाया है, अब कुछ नहीं खाना। बस उस दिन के बाद से उन्होंने खाना ही छोड़ ही दिया। बच्चे चले गये, लेकिन जाते समय सभी को उनकी फिक्र हो रही थी, क्योंकि बीजी ने खाना छोड़ दिया था। अंगद , मेरा पोता उस समय बहू के पेट में था। बहू से भी बीजी बोली, मैं रहूं, न रहूं लेकिन अब कुछ दिनों बाद एक छोटा सा बच्चा हमारे घर में किलकारियां मारेगा। उसके बाद बहुत कहने पर भी बीजी ने कुछ नहीं खाया। होली बीत गई लेकिन काफी उदासी में क्योंकि बीजी धीरे धीरे अजीब सी हालत की ओर जा रही थी। वे मुझ बोली, तू आफिस से छुटृटी ले ले, मैंने कहा ठीक है, मैंने मार्च से एक से छुट्टी ले ली। मैंने चुटकी लेने के लिये कहा कि आप तो ठीक हो, छुटृटी की क्या जरूरत है, राजू तो है ही आपके पास, बीजी बोली , मुझे कुछ हो गया तो लोग कहेंगे ,देखों मां को देखा भी नहीं। मेरा मन उनके प्रति प्यार से भर उठा, सोचा ,देखो मां को हमेशा अपनी औलाद का फिक्र होता है , अपने जाने के बाद का फिक्र रहता है। इस दौरान, रिश्तेदार और पारिवारिक मित्र उन्हें देखने आने लगे। भाईया , भाभी, मेरी बहन, सभी को मिल कर ऐसे खुश हो रही थी जैसे कहीं लंबी या़त्रा पर निकलने से पहले सभी से मिलन होता है। जैसे कोई उन्हें देखने आता, उनके नई ‘ाक्ति से आ जाती, पुराने किस्सों को याद करती। उनकी 98 वशZ की बूढ़ी आंखों में चमक आ जाती। मेरी मां उन्हें देखने के लिये नहीं आ सकी क्योंकि वे भी बीमार थी। मैंने बीजी की मम्मी से बात करायी तो उनकी खुशी देखते ही बन रही थी। करीब बीस मिनट तक मम्मी ने अमृतसर से बीजी से बात की। जो रिश्तेदार मुझ भूले हुए थे, उनके बारे में भी बीजी और मम्मी के बीच बात होने लगी। बीजी के मायके और ससुरराल के कुछ और रिश्तेदारों से भी मैंने उनकी बात करायी। मैं चाह रही थी कि बीजी सभी से मिल लें, बात कर लें इसी बीच आठ तारीख को बीजी बोली, तू आफिस चली जा, कितने दिन छुट्टी लेगी, मैंने कहा, मेरे पास बहुत छुटृटी है लेकिन उन्होंने जिद करके मुझे आफिस भेज दिया। वे कुछ भी नहीं ले रही थी। हमारे फेमिली डाक्टर हर दूसरे दिन उन्हें देखने आ रहे थे। बीजी का बीपी और प्लस रेट बिलकुल ठीक था, बीस दिन तक कुछ न खाने के बावजूद उनकी भीतरी ‘ाक्ति को देख कर डाक्टर भी दंग था। नौ मार्च की ‘ााम को जब डाक्टर आये तो मैंने उनके पूछा , इन्हें कुछ खाने के लिये कैसे दिया जाए, डाक्टर बोले, इनकी मर्जी के खिलाफ कुछ खाने का न दो। डाक्टर ने यह भी कहा, इनका जैसे मन हो, वैसे ही करने दो। 10 मार्च को मैंने आफिस जाने से पहले उन्हें ग्लकूज घुला पानी पिलाना चाहा, उन्होंने आधा चम्मच लेने के बाद पानी मुंह से निकाल दिया। पिछले एक माह से उनमें एक बदलाव देख रही थी, हर समय मुझे आवाज लगाती रहती थी, जब मैं उनके सामने आती, तो चुप हो जाती। मैं पूछती, कुछ चाहिए है, तो चुप लगा जाती। मुझे आवाजे लगाने का सिलसिला रात को भी जारी रहता था। पता नहीं, उन्हेंं अंदर से क्या बैचेनी होती थी, मुझे देख का ‘ाांत हो जाती।10 मार्च को आफिस में प्रतिदिन होने वाली मीटिंग के बाद आफिस बाहर निकली तो रास्ते में मेरे पड़ौसी का फोन आया, जल्दी घर आ जायो, मैं समझ चुकी थी। घर पहुची तो राजू सीड़ियों में ही मिल गया, उसकी आंखों में आंसू थे। अंदर जा कर देखा तो बीजी की वो आंखें बंद हो चुकी थी जो दो पहले तक सभी से बाते कर के चकम चकम जा रही थी।
आज होली थी, बीजी की बहुत याद आयी, आज के दिन तो उनका दाह संस्कार किया था हमने। ये पोस्ट मैंने होली के दिन ‘ााम को बस यूं ही लिख दी।

Wednesday, August 20, 2008

कुछ नया करना तो चाह रही थी लेकिन ....

15 अगस्त को कुछ नया करना तो चाह रही थी लेकिन वो अपने समय पर हो नहीं सका। मैंने आज कई दिन के बाद कमेंट्स पढ़े हैं, सभी को साधुवाद जिन्होंने मेरे कहे को याद रखा। कुछ ने उलाहना भी दिया है कि क्यों नहीं लिखा है, ये भी लिखा है जो डर गया वो घर गया या मर गया। ऐसा कुछ नहीं है। मैं बताना चाहती हूं कि मेरा प्लान रक्षाबंधन के कारण थोड़ा डीले हो गया है लेकिन वो जारी है। डरने वाली कोई बात नहीं है। वैसे भी डरना कैसा? ब्लाग पर क्या हो रहा है, उसमें मैंने ऐसा कुछ नहीं लिखा जो किसी की भावनाअों को आहत करे। उसके बाद कुछ हंगामा सा हुआ, उस पर मैं क्या कहूं? होता है तो होता रहे, ब्लाग की दुनिया में ऐसा चलता रहता है, ऐसा मैंने जाना है।

Monday, August 11, 2008

हंगामा है क्यों बरपा


मैंने रीमिक्स में ब्लाग पर एक स्टोरी की। उसे अपने ब्लाग पर भी डाल दिया, बस हंगामा मच गया। मैं तो डरने वाली नहीं, लिखना आगे भी जारी रहेगा। और हां, उसमें प्रयोग किया फोटा भी चर्चा का सबजेक्ट बन गया। क्या करूं? करते रहे लोग हंगामा। इस बार भी एक स्टोरी कर डाली है, ब्लाग पर ही। देखना यह है कि इस स्टोरी को ब्लाग पर डालूंगी तो क्या होगा?हंगामा तो एक फिर होगा, यह मुझे पता है, उसका रूप क्या होगा, यह तभी पता चलेगा। 15 को डालूंगी इस स्टोरी को ब्लाग पर।

Sunday, August 3, 2008

दोस्ती का दिन सिर्फ़ एक दिन

आज संडे हैं, मेरा आफ रहता है लेकिन अभी अभी मुझे आफिस से फोन आया, फ्रेंडषिप डे पर कुछ आइटम लिखना है, मैडम कुछ आइडिया दे दो़़़, मैंने कुछ टिप्स दे दिये लेकिन बाद में सोचा कि जितना हल्ला इस पर माकेZट में हो रहा है, उससे भी ज्यादा हल्ला अखबारों में भी हो रहा है। अभी इस बार के फीचर पेज पर भी दो स्टोरी दोस्ती पर ही आधारित थी। मैंने भी एक आइटम दिया। दो दिन पूर्व ही भोलेनाथ का जलाभिशेक पर्व था, मेरे मोबाइल पर एक ही मैसेज आया लेकिन आज सुबह से मैं मैसेज इरेज करके थक गई हूं। लोगों में दोस्ती, वेलेनटाइन डे, और ऐसे ही दिवसों पर बेहतर उर्जा देखने को मिलती है। अफसोस तो यह है कि यह नई पीढ़ी का खेल है। समझ नहीं आता, ऐसे कौन कौन से दिन अब देखने को मिलेंगे।

Saturday, August 2, 2008

चलो कुछ शुरू तो हुआ

आज मैने रिमिक्स में पहली बार ब्लाग के बारे में एक कालम लिखा है। कई दिनों से सोच रही थी कि ब्लाग पर अखबार में कुछ आरम्भ करूं लेकिन हो नहीं पा रहा था। इसमें साहित्यक, खास सबजेक्ट से जुड़े या एवं चर्चित ब्लाग पर ही लिखा जायेगा। आज इसमें मैंने साई ब्लाग पर पिछले दिनों हुई गरमा गरम चर्चा पर लिखा है। नारी अंगों पर लिखी गई पोस्ट पर रचना के कमेंट ने मुझे इस सबजेक्ट पर लिखने को मजबूर किया। रचना का कमेंट भी काफी सटीक रहा उसके बाद अरविंद मिश्रा जिन्होंने यह पोस्ट लिखी थी ने अपने कमेंट के जरिये अपनी ´तौबा` को जताया भी। यह सभी बातें उसमें रखी गई हैं।