Saturday, March 14, 2009

बीजी की कुछ यादें

आज दूध वाला जब नौ बजे तक न आया तो मुझे दूध के लिये चिंता हुई, आज होली के कारण बाजार भी बंद रहेंगे।
मुझे बीजी की याद आ गई। बीजी ,मेरी सासु जी, होती तो वह दूध पहले ही ले कर रख लेती थी। कह देती, कल को रंग में कहां दूध ले कर आ सकेगा, दूधवाला। उन्हें फिक्र रहता था, बच्चे आयेंगे तो कहीं दूध खत्म न हो जाएं। दो साल पहले की ही तो बात है, जब बीजी ने खाना पीना छोड़ दिया था, बच्चे होली पर घर आये हुए थे। सब ने बीजी को पूछा , बीजी क्या खाना है। बीजी मेरी तरफ देख कर बोली, बच्चों के लिये भठूरे छोले बना ले। भठूरों की तैयारी रात को ही कर के रख दी, छोले भी भिगो दिये। सुबह भठूरे छोले बनाये तो बड़ा बेटा बोला, बीजी आप भी थोड़ा सा ले लें। बीजी ने काफी कहने पर आधे से भी कम भठूरा खाया। उस होली पर सभी ने खूब मजा किया, बीजी भी बच्चों के बीच सुखद महसूस कर रही थी। बच्चे भी सारा समय उनके बेड पर ही बैठे रहे। बार बार एक ही बात कहती, तुम एंज्वाय करों, मैं ठीक हूं। जब दोनों बेटे घर आते, वे बहुत खुश होती। हर थोड़ी देर के बाद कहती, कुछ बना खिला दें इन्हें। मेेरे पति बीजी के अकेले ही बेटे थे,इस लिये बीजी अपने पोतों को कुछ ज्यादा ही प्यार करती थी। उस होली पर बीजी बहुत खुश थी। होली के दूसरे दिन बीजी से पूछा वे क्या खाएंगी, वे बोली , मैंने बहुत खाया है, अब कुछ नहीं खाना। बस उस दिन के बाद से उन्होंने खाना ही छोड़ ही दिया। बच्चे चले गये, लेकिन जाते समय सभी को उनकी फिक्र हो रही थी, क्योंकि बीजी ने खाना छोड़ दिया था। अंगद , मेरा पोता उस समय बहू के पेट में था। बहू से भी बीजी बोली, मैं रहूं, न रहूं लेकिन अब कुछ दिनों बाद एक छोटा सा बच्चा हमारे घर में किलकारियां मारेगा। उसके बाद बहुत कहने पर भी बीजी ने कुछ नहीं खाया। होली बीत गई लेकिन काफी उदासी में क्योंकि बीजी धीरे धीरे अजीब सी हालत की ओर जा रही थी। वे मुझ बोली, तू आफिस से छुटृटी ले ले, मैंने कहा ठीक है, मैंने मार्च से एक से छुट्टी ले ली। मैंने चुटकी लेने के लिये कहा कि आप तो ठीक हो, छुटृटी की क्या जरूरत है, राजू तो है ही आपके पास, बीजी बोली , मुझे कुछ हो गया तो लोग कहेंगे ,देखों मां को देखा भी नहीं। मेरा मन उनके प्रति प्यार से भर उठा, सोचा ,देखो मां को हमेशा अपनी औलाद का फिक्र होता है , अपने जाने के बाद का फिक्र रहता है। इस दौरान, रिश्तेदार और पारिवारिक मित्र उन्हें देखने आने लगे। भाईया , भाभी, मेरी बहन, सभी को मिल कर ऐसे खुश हो रही थी जैसे कहीं लंबी या़त्रा पर निकलने से पहले सभी से मिलन होता है। जैसे कोई उन्हें देखने आता, उनके नई ‘ाक्ति से आ जाती, पुराने किस्सों को याद करती। उनकी 98 वशZ की बूढ़ी आंखों में चमक आ जाती। मेरी मां उन्हें देखने के लिये नहीं आ सकी क्योंकि वे भी बीमार थी। मैंने बीजी की मम्मी से बात करायी तो उनकी खुशी देखते ही बन रही थी। करीब बीस मिनट तक मम्मी ने अमृतसर से बीजी से बात की। जो रिश्तेदार मुझ भूले हुए थे, उनके बारे में भी बीजी और मम्मी के बीच बात होने लगी। बीजी के मायके और ससुरराल के कुछ और रिश्तेदारों से भी मैंने उनकी बात करायी। मैं चाह रही थी कि बीजी सभी से मिल लें, बात कर लें इसी बीच आठ तारीख को बीजी बोली, तू आफिस चली जा, कितने दिन छुट्टी लेगी, मैंने कहा, मेरे पास बहुत छुटृटी है लेकिन उन्होंने जिद करके मुझे आफिस भेज दिया। वे कुछ भी नहीं ले रही थी। हमारे फेमिली डाक्टर हर दूसरे दिन उन्हें देखने आ रहे थे। बीजी का बीपी और प्लस रेट बिलकुल ठीक था, बीस दिन तक कुछ न खाने के बावजूद उनकी भीतरी ‘ाक्ति को देख कर डाक्टर भी दंग था। नौ मार्च की ‘ााम को जब डाक्टर आये तो मैंने उनके पूछा , इन्हें कुछ खाने के लिये कैसे दिया जाए, डाक्टर बोले, इनकी मर्जी के खिलाफ कुछ खाने का न दो। डाक्टर ने यह भी कहा, इनका जैसे मन हो, वैसे ही करने दो। 10 मार्च को मैंने आफिस जाने से पहले उन्हें ग्लकूज घुला पानी पिलाना चाहा, उन्होंने आधा चम्मच लेने के बाद पानी मुंह से निकाल दिया। पिछले एक माह से उनमें एक बदलाव देख रही थी, हर समय मुझे आवाज लगाती रहती थी, जब मैं उनके सामने आती, तो चुप हो जाती। मैं पूछती, कुछ चाहिए है, तो चुप लगा जाती। मुझे आवाजे लगाने का सिलसिला रात को भी जारी रहता था। पता नहीं, उन्हेंं अंदर से क्या बैचेनी होती थी, मुझे देख का ‘ाांत हो जाती।10 मार्च को आफिस में प्रतिदिन होने वाली मीटिंग के बाद आफिस बाहर निकली तो रास्ते में मेरे पड़ौसी का फोन आया, जल्दी घर आ जायो, मैं समझ चुकी थी। घर पहुची तो राजू सीड़ियों में ही मिल गया, उसकी आंखों में आंसू थे। अंदर जा कर देखा तो बीजी की वो आंखें बंद हो चुकी थी जो दो पहले तक सभी से बाते कर के चकम चकम जा रही थी।
आज होली थी, बीजी की बहुत याद आयी, आज के दिन तो उनका दाह संस्कार किया था हमने। ये पोस्ट मैंने होली के दिन ‘ााम को बस यूं ही लिख दी।